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हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह - मधुशाला पुस्तक समीक्षा: एक अद्वितीय कविता संग्रह का समीक्षात्मक विश्लेषण

मधुशाला: हरिवंश राय बच्चन की प्रभावी रचना 


 1935 में छपी हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित "मधुशाला", जो बच्चन जी ने 1933 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के शिवा जी हॉल में मंच से पहली बार पढ़ी। 135 रुबाइयों की ये पुस्तक की ख़ास बात ये है की हर रुबाई का अंत मधुशाला शब्द से होता है।  मधुशाला एक ऐसी पुस्तक है जो एक अद्वितीय साहित्यिक अनुभव प्रदान करती है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य के अनमोल रत्नों में से एक है और हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्ध कविता संग्रह है। 

   मधुशाला की एक-एक रुबाई में बच्चन जी ने उपनिषदों के रहस्य को बताया है।  "मधुशाला" एक अलंकारिक, रसभरी, और प्रभावी रचना है जो शराब के अवतार में समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। यह कविता संग्रह अपनी मधुर भाषा, छंदों और अलंकारों के बादल के रूप में पढ़कर पाठकों को एक आदर्श और मनोहारी अनुभव प्रदान करती है।


हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह - 'मधुशाला' पुस्तक समीक्षा




हर एक कविता एक मधुशाला के रूप में प्रस्तुत होती है और पाठकों को अपरिहार्यता, जीवन की 
अनिश्चितता, आत्म-विश्वास, प्रेम और जीवन की सामर्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है।

"मधुशाला" के रचयिता हरिवंश राय बच्चन की मधुर भाषा और अद्वितीय रचनात्मकता को सराहना करना मुश्किल है। इस पुस्तक में आपको भारतीय संस्कृति, प्रेम, जीवन के अर्थ, और मानवीय संबंधों के विचार प्राप्त होंगे। "मधुशाला" हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है और हर एक भाषा प्रेमी को आकर्षित करेगी।


हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह - 'मधुशाला' पुस्तक समीक्षा


मधुशाला की कुछ पंक्तियाँ -


मृदु भावों के अंगूरों की 

आज बना  लाया हाला ,

प्रियतम, अपने ही हाथों से 

आज  पिलाऊँगा प्याला;

       पहले भोग लगा  लूँ तुझको 

       फिर प्रसाद जग पाएगा ;

                सबसे पहले तेरा स्वागत 

                करती मेरी मधुशाला  . 



प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर 

पूर्ण निकालूंगा  हाला ,

एक पाँव से साकी बनकर 

नाचूँगा लेकर प्याला ;

       जीवन की मधुता तो तेरे 

       ऊपर कब का वार चुका 

               आज निछावर कर दूँगा मैं 

                तुझ पर जग की मधुशाला  . 



प्रियतम तू मेरी हाला है,

मैं तेरा प्यासा प्याला,

अपने को मुझमें भरकर तू 

बनता है पीनेवाला;

      मैं तुझको छक छलका करता,

      मस्त मुझे पी तू होता;

           एक दूसरे को  हम दोनों 

            आज परस्पर मधुशाला। 









ये भी देखें - "मधुबाला: हरिवंश राय बच्चन की अमर प्रसिद्ध कृति में प्यार और विपदाओं का चित्रण"
                   

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