तुलसीदास जयंती २०२३: हिंदी साहित्य के अमर कवि
तुलसीदास जी का अद्वितीय जीवन: आरंभ से अंत तक
हर बच्चे के जन्म पर बधाई गायी जाती है। राम जन्म की बधाई दी जाती है, शंकराचार्य के जन्म की भी बधाई दी गयी लेकिन तुलसीदास जी के जन्म पर ना कोई बधाई बजी ना कोई खुशियां मनायी गयी। और हम सब उनके ऋणी है जो उन्होंने ऐसी राम महिमा की पुस्तक लिख दी, जो जहां भी गायी जाए वहां बधाई दी जाती है , समाज का हर व्यक्ति वहां बिना किसी भेद-भाव के साथ में बैठ कर आंनद लेता है।
क्या आप जॉन बर्नार्ड शॉ को जानते हैं या फिर विलियम शेक्सपियर, ऐनी फ्रैंक, एलेग्जेंडर इन में से किसी को, शायद हां और हो सकता है नहीं भी जानते होंगे। लेकिन क्या आप नागार्जुन को जानते हैं जो अपने आप में जनकवि थे , गोपाल दास नीरज, हरिशंकर परसाई, महादेवी वर्मा सब नामों से परिचित ही होंगे आप। हिंदी साहित्य में जाने-माने कवियों के नाम है, लेकिन आज हम उनकी बात करेंगे जो कवियों के भी कवि है, जिनकी रचना पढ़ कर ही नीरज, नीरज बने , हरिवंश राय बच्चन मधुशाला लिख पाए। हिंदी साहित्य में ;भक्ति काल का बिगुल बजाने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में।
1532 सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उत्तर प्रदेश में जन्मे तुलसीदास जी का जीवन जन्म से संघर्षपूर्ण रहा। प्रायः शिशु का जन्म 9 माह के अंतराल में होता है लेकिन तुलसीदास जी का जन्म 12 माह बाद हुआ था। कहा जाता है कि जन्म के साथ ही उनके 32 दाँत थे जिसकी वजह से सब उन्हें अशुभ मानने लगे। जन्म के बाद पहला संकट आया कि दूसरे दिन उनकी मां चल बसी, बिन मां के बच्चे को पालना कितना मुश्किल होता है यह जानते हुए उनके पिता ने तुलसीदास जी को चुनियाँ नामक दासी को दे दिया, जिसने उनका 5 साल की उम्र तक पालन पोषण किया।
चुनियाँ की मृत्यु के बाद वो भजन कीर्तन में लगे और नरहरि स्वामी जी को गुरु बनाकर उनसे राम मंत्र की दिक्षा ली। 30 साल की उम्र में रत्नावली नामक एक सुशील कन्या से उनका विवाह हुआ। कुछ वक्त तक सब ठीक था पर कहते है ना शरीर का जन्म तो माता-पिता द्वारा होता है लेकिन आत्मा के जन्म के बिना, आत्म ज्ञान के बिना चलता फिरता शरीर भी पशु तुल्य माना जाता हैं। उनके जीवन में अब वो वक्त आ गया था जब इस दुनिया को वो तुलसीदास जी मिलते जो राम का परिचय दुनिया को करवाते।
जब तुलसीदास जी को आत्म ज्ञान हुआ -
एक बार उनकी पत्नी उनसे रूठ कर अपने मायके चली गई कुछ वक्त बाद उनके वियोग में तुलसीदास जी अपना सुध-बुध खो कर, बिना कुछ सोचे समझे अंधेरी रात में उनसे मिलने के लिए निकल पड़े। बीच में एक नदी आई जिसमें एक लाश को लकड़ी का टुकड़ा समझ कर उसके सहारे उन्होंने नदी पार कर ली और एक सांप को रस्सी समझ कर उसके सहारे वो उनके कमरे में चले गए अपने पति को इस तरह ऐसे वक्त में अपने सामने देख कर रत्नावली को बहुत क्रोध आया। क्रोध में उन्होंने कहा:-
"अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति, नेकु जो होती राम से , तो काहे भव-भीत?"
अर्थात "मेरे इस हांड मांस के शरीर के प्रति इतनी तुम्हारी आशक्ति है, उतनी आधी भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन सफल हो गया होता" . यह सुनकर तुलसीदास जी सन्न रह गए ,उनके हृदय में यह बात उतर गयी और उसी वक्त वहां से चले गए , एक नए सफर की ओर। अगर उस दिन रत्नावली ने उन्हें खरी-कोटि नहीं सुनाई होती तो तुलसीदास कभी गोस्वामी तुलसीदास जी नहीं बन पाते।
यह भी पढ़े - "वाल्मीकि महर्षि: एक महान संत और लेखक"
तुलसीदास जी की रामचरितमानस -
हर बच्चे के जन्म पर बधाई गायी जाती है। राम जन्म की बधाई दी जाती है, शंकराचार्य के जन्म की भी बधाई दी गयी लेकिन तुलसीदास जी के जन्म पर ना कोई बधाई बजी ना कोई खुशियां मनायी गयी। और हम सब उनके ऋणी है जो उन्होंने ऐसी राम महिमा की पुस्तक लिख दी, जो जहां भी गायी जाए वहां बधाई दी जाती है , समाज का हर व्यक्ति वहां बिना किसी भेद-भाव के साथ में बैठ कर आंनद लेता है।
रामचरितमानस की महिमा के बारे में हर कोई जानता है। तुलसीदास जी समग्र मानवता के कवि माने जाते हैं रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भारतीय संस्कृति का एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने अपनी उच्चस्तर की प्रतिभा दिखाई है, जो उन्हें एक महाकवि और लोकनायक होने का प्रमाण देती है।
हिंदी साहित्य में अब तक रामचरितमानस जैसा कोई दूसरा महाकाव्य नहीं हुआ। मनुष्य जीवन के हर सवाल का जवाब है रामचरितमानस। अगर गीता मुक्ति का मार्ग बताती है तो मानस हमें जीवन जीना सिखाती है।
अपने 126 साल के जीवन काल में तुलसीदास जी ने 39 ग्रंथों और 22 कृतियों की रचना कि।
तुलसीदास जी की मृत्यु -
एक टिप्पणी भेजें