पिता पर बेहतरीन 3 कविताएं
पिता - एक मीठा समंदर
जो अंदर से नरम बाहर से सख्त हो वो है पिता....
जिसके गुस्से में भी प्यार दिखे वो है पिता....
जो खुद धूप में रहकर हमें छाया दे वो हैं पिता......
हर क्षण हर पल अपनी समस्या छुपा कर दिनभर की
हमारी समस्या हंसते -हंसते सुन ले वो है पिता.....
जो हमारी फिकर सख्ति से करें वो है पिता....
वक्त रुक सकता है चलते चलते पर जो ना रुके
थकने के बाद भी वो है पिता ....
जो सब कुछ करके क्रेडिट मां को दे दे वो है पिता ....
जो हमारे छोटे से दर्द के सामने अपना
बड़ा सा दर्द छुपा ले वो है पिता .....
किसी के उंगली उठाने पर जो
योद्धा की तरह सामने खड़ा हो जाए वो हैं पिता.....
देवकी और यशोदा आज हर किसी को याद है
लेकिन कृष्ण के लिए जिन्होंने अपना सब कुछ
त्याग दिया वह नंद और वसुदेव थे पिता.....
जिस राजा दशरथ ने अपने बेटे के वनवास
की बात सुनकर अपना देह त्यागा वो थे पिता....
मेरे पापा
तुम्हारी उदासियों को झाड़ू से बाहार कूड़े में फेंक दूं मैं
तुम्हारी खुशियों का चमन इन फिज़ाओं से तोड़ लाऊं मैं,
बाबा तुम्हारे अंधेरों को, पोछे के पानी में आंखों की दो बूंद मिला पोंछ दूँ मैं
तुम्हारी रातों को दीया जला रोशन कर दूँ मैं
और उस दीये तले भी अंधेरा ना रहने दूँ मैं ,
जाड़े में सूरज, गर्मी में चांद प्यारा लगता है
तुम एक बार कहो इन दोनों को खरीद लाऊं मैं,
तुम सूरज, मेरा चेहरा सूरजमुखी का फूल है
तुम उदित हो तो खिल जाऊं मैं
तुम्हारे जाने पर मुरझा जाऊं मैं ,
बाबा! बादलों के पीछे तुम्हारी मौजूदगी मुझे जागते रहने कि उम्मीद देती है
और अंधेरी रात तुम्हारे आने के इंतजार में कटती हैं
जल्दी आया करो बाबा, जल्दी आया करो।।
बाबा का प्यार
बाबा का प्यार
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