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 महिला सशक्तिकरण पर चुनिंदा कवितायेँ 

                      

स्त्री को स्त्री रहने दो 


किसी पेड़ की टहनियों से 

या रस्सी से बने झूलों में नहीं झूली मैं कभी 

मां का आंचल पकड़ बाबा के पलकों में बैठ 

झूला झूल बढ़ी हुई मैं ,



                                                     अम्मा कहती थी, इश्क़ मत लड़ाना 

दो पल के लड़कपन में इज्जत को दांव पर मत लगाना,

 खाना बनाते हुए अम्मा मुझे संस्कार और गृहस्थी सिखाती थी  

पर जब हाथों में झाड़ू पकड़ती तो, उसे छीन मां मुझे हाथों में किताबें थमाती थी 

किताबों से इश्क करने पर माँ ने ही मजबूर किया था मुझे 

चुल्हे से निकले धुंए का नाम बता कर चूल्हा जलाना सिखाया था मुझे 

डेनिम जींस पहना, कलम  हाथों में देकर  

बाबा ने कभी सर पर नहीं बैठाया ,

बल्कि हर वो आंखें,घूरती हुई जो मेरी ओर उठे

 उसे कलम की नोक से नोचना सिखाया 

मुझे बताया कि कैसे सुख में दुख में , उसकी वेदना या क्रोध में 

कभी किसी का हाथ ना छोड़ना, 

लेकिन स्वाभिमान के नाम का एक तिनका भी कोई  तुम पर उड़ाए 

तो उसका अस्तित्व कैसे खंडन करना,

एक स्त्री को, उन्होंने स्त्री ही रहने दिया 

सीमा में बाँध कर, उसपर कभी पुल नहीं बनने दिया।।

समय और समाज से अब-तक बहुत लड़ी मैं थे 

पर माँ -बाबा मेरे साथ खड़े , सबसे बड़े योद्धा हैं।।



 
Top 4 Hindi Poems On Women Empowerment

         

नारी जिसका हर कोई ऋणी 


मायके में सुना पराया धन है

ससुराल में कहां पराये घर से आई है
हे प्रभु!अब तू बता यह औरत किस घर के लिए बनाई है
बचपन से लेकर मृत्यु तक संघर्ष करती आई है
मां से लेकर सास तक परिवार के लिए जीती  आई है...

पहले पिता ने अपना नाम दिया 
फिर पति ने अपना मान लिया बेटा भी कुछ  कम ना था कहने को 
कि तू सिर्फ मेरी मां है
 प्रभु अब तू बता पहचान इसकी कहां है....

मायके से लेकर ससुराल तक हर  रिश्ते निभाते आई
टूट ना जाए कोई  बंधन इसलिए सामने से झुकती आई
यह तो वह औरत है जो पति के लिए यमराज से भी लड़ कर आई.....


सास को गोरा ससुर को शंकर  जेठ को ब्रह्मा देवर को कृष्णा 
पति को विष्णु  मान जो खुद लक्ष्मी बन जाती है
सलाम है उस औरत को जो  मकान को घर और  घर को मंदिर  बनाती हैं.....


गृहिणी बड़ा मामूली सा शब्द ,
पर इसका अर्थ बहुत बड़ा है ....
"सारा घर जिसका ऋणी वही है गृहिणी"




                                    Top 4 Hindi Poems On Women Empowerment




नारी

    

दुर्गा हूँ मैं उस घर की 

जिस घर में मेरा जन्म हुआ 

कल्याणी मैं उस घर की 

जिस घर में मेरा पालन हुआ 

अंगुली उठी अगर मुझपे तो 

मैं सब कुछ सुन जाऊँगी

एक अबला बन हर कसौटी 

पार कर जाऊँगी | |

             सती की तरह जल जाऊँगी 

             सीता की तरह समा जाऊँगी 

             आंच आ गयी न परिवार पे 

            तो ये ब्रम्हाण्ड मैं खा जाऊंगी | |

ना सिन्ड्रैला ना रिप्रेंजल ना मैं

कोइ राजकुमारी हूँ 

मैं सीता जनक तेरी और 

तुलसी भी तेरे आँगन की हूँ | | 

          एक युग में मर्यादा बन कर 

          मर्यादा की अग्नि में जली गयी 

          दूजे युग में भरी सभा में 

          मेरी मर्यादा लूटी गयी | | 

फिर भी दुर्गा मैं कल्याणी 

मैं ही सिद्धिदात्री हूँ 

आंच आ गयी ना परिवार पे 

तो मैं ही कालरात्रि हूँ  | | 

        राम के हाथो तरने वाली 

        ऋषि पत्नी मैं अहल्या 

        शिव को स्तनपान कराने वाली 

        नारी मैं अनसुइया | | 

विवेकी राम को जन्म देने 

वाली कौशल्या मैं हूँ 

चंचल कृष्ण की यशोदा 

मैया भी मैं हूँ | | 

     कार्तिके को आँचल से ढक

      प्यार करने वाली मैं माँ काली 

      उसी ओढ़न को सर पे ओढ़ 

     महिसासुर के लिए महाकाली | |  



Top 4 Hindi Poems On Women Empowerment




बेलगाम कलम 


                                                मैं अपनी कलम को बेलगाम करना चाहती हूँ 

  जो सह सकते हैं वो लिख भी सकते हैं 
  ये इस दुनिया को बताना चाहती हूँ ......

मैं अपनी कलम को दौड़ा कर चला कर
रेंगा कर इसकी ताकत जहां को  दिखाना चाहती  हूँ 
मैं अपनी कलम को बेलगाम करना चाहती हूँ। 

अब तक इस दुनिया ने मुझे प्रेम में देखा 
ममता में देखा , करुणा में देखा हैं 
अब इस दुनिया को अपने कलम की 
ताकत दिखाना चाहती हूँ .... 
मैं अपनी कलम को बेलगाम करना चाहती हूँ 

अब तक समुद्र मंथन में लक्ष्मी , अमृत दुनिया ने देखा हैं 
अब इस मंथन में चंडी का रूप दिखाना चाहती हूँ 
मैं अपनी कलम को बेलगाम करना चाहती हूँ।  

विवेकता के साथ माँ शारदा 
ममता के साथ मैं  पार्वती हूँ 
और क्रोध में कालरात्रि 
इस पृथ्वी को दिखाना चाहती हूँ
मैं अपनी कलम को बेलगाम करना चाहती हूँ। 
                



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